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BJP ने बदल डाली खुद के लिए परिवारवाद की परिभाषा

वंशवाद की राजनीति को लेकर कांग्रेस पर पिछले कई दशकों से सवाल उठते आए हैं. बीजेपी और खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तमाम चुनावी जनसभाओं में इसका जिक्र करते हैं और कांग्रेस को एक परिवार की पार्टी बताते हैं. हालांकि हर चुनाव में ऐसे भी आंकड़े सामने आते हैं, जो बीजेपी के अंदर फैल रहे वंशवाद से पर्दा उठाने का काम करते हैं. वहीं अब कांग्रेस के दिग्गज नेता एके एंटनी के बेटे अनिल एंटनी को पार्टी में शामिल कर बीजेपी ने एक बार फिर बता दिया है कि उनके लिए वंशवाद के अलग ही मायने हैं. एंटनी के बेटे का बीजेपी में शामिल होना पहला उदाहण नहीं है, इससे पहले भी बीजेपी कई सालों से कांग्रेस के वंशवाद को अपने हाथों से पाल-पोस रही है. 

एके एंटनी के बेटे अनिल एंटनी ने पीएम मोदी और गुजरात दंगों पर बनी बीबीसी डॉक्यूमेंट्री की आलोचना की थी, इसके बाद विवाद बढ़ा तो उन्होंने कांग्रेस पार्टी छोड़ने का एलान कर दिया. हालांकि तब ये बात सामने नहीं आई थी कि वो बीजेपी ज्वाइन करने जा रहे हैं. जनवरी में अपने इस्तीफे के बाद अब अनिल एंटनी ने बीजेपी का दामन थामा. उन्होंने पार्टी ज्वाइन करते हुए परिवारवाद का भी जिक्र कर दिया. उन्होंने कहा कि कई लोग ये सोचते हैं कि उनका धर्म एक परिवार के लिए काम करने का है, लेकिन मेरा धर्म देश के लिए काम करना है. अब अनिल एंटनी को केरल बीजेपी में बड़ी जगह मिलना तय माना जा रहा है.

 

अनिल एंटनी का बीजेपी ने खुले हाथों से स्वागत किया और इसका खूब प्रचार भी हुआ, लेकिन इससे ये साफ हो गया कि कैसे बीजेपी में लगातार कांग्रेस का वंशवाद फल-फूल रहा है. ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं, क्योंकि एंटनी से पहले कांग्रेस के राजनीतिक परिवार से कई नेता बीजेपी में शामिल हुए और आज कई अहम पदों पर भी बैठे हैं. 

कांग्रेस के दिग्गज नेताओं में से रहे माधवराव सिंधिया के बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस में कई सालों तक रहे. पिता की मौत के बाद सिंधिया ने उनकी विरासत को संभाला और कांग्रेस में कई अहम पदों पर रहे. अपने पिता की पारंपरिक सीट गुना से ज्योतिरादित्य सिंधिया ने पहली बार चुनाव लड़ा और इसके बाद लगातार जीतते गए. 2014 की मोदी लहर में भी उन्होंने जीत हासिल की. हालांकि 2019 में उन्हें तब झटका लगा जब उनके ही एक पूर्व निजी सचिव ने बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ा और उन्हें हरा दिया.

मध्य प्रदेश की राजनीति में कई साल देने के बावजूद ज्योतिरादित्य सिंधिया के मन मुताबिक काम नहीं हो रहा था, कमलनाथ के होते हुए उन्हें अपना राजनीतिक भविष्य नहीं दिखा तो उन्होंने पार्टी छोड़ने का फैसला किया. इससे ठीक पहले उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह से मुलाकात की थी. इस मुलाकात के बाद ही सिंधिया ने इस्तीफे का एलान किया. बीजेपी ने बड़ी प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कांग्रेस के इस नेता का ग्रैंड वेलकम किया था. आज सिंधिया केंद्रीय मंत्री हैं.

 

राजनीति मामलों के जानकार रशीद किदवई इसे लेकर कहते हैं कि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि बीजेपी में वंशवाद नहीं है. पिछले कई चुनावों में हमने ऐसे कई उदाहण देखे हैं, जब बीजेपी ने अपने ही नेताओं के बेटों को टिकट दिया. अपने स्थापना दिवस के मौके पर अनिल एंटनी को पार्टी में लेकर बीजेपी ने यही साबित किया है कि वो वंशवाद से तौबा नहीं करते हैं. इसके लिए बीजेपी और प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी ही एक परिभाषा बना ली है. वो कहते हैं कि बीजेपी में वंशवाद कांग्रेस जैसा नहीं है, यहां किसी भी पद पर कोई भी अपना दावा नहीं कर सकता है. कुल मिलाकर जो भी सत्ता में है, वो कुछ भी कर सकता है. या फिर कहें तो अपने हिसाब से किसी भी चीज की परिभाषा को बदल सकता है.

यानी बीजेपी भले ही कांग्रेस पर परिवारवाद या वंशवाद का आरोप लगाकर लगातर हमलावर रहती है, लेकिन सच्चाई ये है कि बीजेपी खुद कांग्रेस के वंशवाद को आगे बढ़ाने का काम कर रही है. अपनी पारंपरिक पार्टी कांग्रेस को छोड़ने के बाद जो भी नेता बीजेपी में शामिल हुए आज उन्हें कई अहम पदों पर जगह दी गई है. ऐसे में ये कहना गलत होगा कि बीजेपी परिवारवाद को बिल्कुल भी बढ़ावा नहीं देती है.

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