इस साल के आखिर में राजस्थान में विधानसभा चुनाव होने हैं। इससे पहले सत्ताधारी कांग्रेस की मुसीबत बढ़ गई है। राजस्थान में सचिन पायलट ने मंगलवार को अपनी ही सरकार के खिलाफ अनशन करने का ऐलान किया है। उधर, कांग्रेस ने पायलट को कड़ी चेतावनी दी है। पार्टी ने दो टूक कहा है कि इस तरह का कोई भी काम पार्टी विरोधी गतिविधि माना जाएगा।
अब सवाल उठता है की आखिर अनशन पर बैठना अब मजबूरी क्यों?
पायलट वसुंधरा राजे के कार्यकाल में हुए घोटालों की जांच का मुद्दा उठा रहे हैं. पायलट ने वसुंधरा राजे पर करप्शन और कुशासन का आरोप लगाते हुए गहलोत के पुराने वीडियो चलाकर पूछा है कि इन मामलों की जांच क्यों नहीं की गई। कांग्रेस के पास पूर्व की बीजेपी सरकार के खिलाफ सबूत थे, लेकिन उस पर कार्रवाई नहीं की गई। पायलट ने कहा था हम इन वादों को पूरा किए बिना चुनाव में नहीं जा सकते। पायलट सीएम गहलोत और बीजेपी नेता वसुंधरा के सियासी रिश्ते से वाकिफ हैं। ऐसे में पायलट इस मामले में अपने कदम काफी आगे बढ़ा चुके हैं। जिसे पीछे खींचना उनके लिए आसान नहीं है। पायलट ने पूर्व सीएम वसुंधरा राजे के भ्रष्टाचार को लेकर जो मांग उठाई है, उसे निश्चित तौर पर केंद्रीय नेतृत्व को भी विचार करने के लिए विवश कर दिया है। ऐसे में पायलट ने कार्यकर्ताओं और नेताओं से स्पष्ट रूप में कहा है कि वे अपनी शालीनता के साथ अनशन करेंगे और सरकार को वसुंधरा के खिलाफ जांच करने के लिए अपनी मांग रखेंगे। ऐसे में हो सकता है कि वह अपने समर्थक विधायकों को न बुलाएं, लेकिन उनके बयानों से साफ है कि वो अब आरपार के मूड में हैं और पीछे नहीं देखेंगे।
आपको बता दें की कांग्रेस प्रभारी सुखविंदर सिंह रंधावा जयपुर पहुंच गए हैं और पायलट को मनाने की कोशिश करेंगे जांच कराने का आश्वासन देकर समझा-बुझाकर बीच का रास्ता निकाल सकते हैं। रंधावा अपना उदाहरण देकर मना सकते हैं कि उन्होंने भी पंजाब में सीएम से कैप्टन अमरिंदर को हटवाया था, लेकिन खुद सीएम नहीं बन पाए थे और सत्ता की कमान चरणजीत सिंह चन्नी को मिली थी और उन्हें उपमुख्यमंत्री बनना पड़ा था। पायलट को यह भी राय दे सकते हैं कि अभी वो युवा है समय बाकी है, जल्दबाजी न करें, पार्टी ने बहुत कुछ दिया है और मौजूदा संकट के समय में उन्हें पार्टी में इस तरह की गतिविधियां नहीं करनी चाहिए। अनशन करने से पायलट के सियासी भविष्य पर असर पड़ सकता है, क्योंकि अब यह सिर्फ गहलोत के मामले तक ही सीमित नहीं, बल्कि कांग्रेस पार्टी का मामला बन गया है।
ऐसे में पायलट का कदम पार्टी विरोधी कदम के तौर पर देखा जा सकता है। पायलट अपने सियासी भविष्य को देखते हुए अपने कदम पीछे खींच सकते हैं, लेकिन उनके पास भी बहुत ज्यादा राजनीतिक विकल्प नहीं है। बीजेपी में भी कई नेता है, जो सीएम के दावेदार हैं और पार्टी में जबरदस्त तरीके से गुटबाजी है। ऐसे में कांग्रेस में रहते हुए ही अपने हक की लड़ाई लड़ना पायलट की मजबूरी है। इसके लिए वो चाहेंगे कि ऐसा कुछ हो, जिससे कि उनका सम्मान भी बना रहे और बात भी बन जाए।
सवाल ये है की क्या पायलट पर कांग्रेस एक्शन ले पाएगी ?
पायलट अगर अनशन करने से अपने कदम पीछे नहीं खींचते हैं तो क्या पार्टी उनके खिलाफ कोई एक्शन लेगी, क्योंकि यह बात रंधावा साफ कह चुके हैं कि अनशन का फैसला पार्टी विरोधी गतिविधि माना जाएगा। कांग्रेस भले इसे पार्टी विरोधी बता रही हो, लेकिन पायलट के खिलाफ एक्शन लेना आसान नहीं है। इसके पीछे कई वजह हैं, पहली बात यह है कि पायलट का अपना सियासी ग्राफ है और युवाओं के बीच उनकी छवि काफी बेहतर है। कांग्रेस उनके खिलाफ एक्शन लेकर राजस्थान में भविष्य की सियासी राह मुश्किल नहीं करना चाहेगी। एक्शन न किए जाने की दूसरी वजह यह हो सकती है कि 25 सिंतबर 2022 को मल्लिकार्जुन खड़गे और अजय माकन की मौजूदगी में होने वाली बैठक के पैरेलल बैठक करने वाले गहलोत खेमे के नेताओं पर अनुशासनहीनता करने के लिए कोई एक्शन नहीं लिया गया। शांति धारीवाल, जलदाय मंत्री-महेश जोशी और धर्मेंद्र राठौड़ को अनुशासनहीनता के लिए नोटिस दिया गया था, लेकिन अभी तक उनके खिलाफ कोई एक्शन नहीं लिया गया है। ऐसे में पायलट के कथित भ्रष्टाचार की जांच की मांग को लेकर अनशन पर बैठने के खिलाफ एक्शन लेना आसान नहीं होगा। एक्शन होता है तो पायलट को सहानुभूति हासिल करने का मौका मिल जाएगा। माना जा रहा है कि पार्टी उन्हें फिलहाल समझा बुझाकर या फिर बीच का रास्ता निकालने की कोशिश करेगी?आखिर पायलट की डिमांड क्या है ?
आपको बता दें . सचिन पायलट फिलहाल अनशन तो वसुंधरा राजे के कार्यकाल में हुए कथित भ्रष्टाचार की जांच कराने और कार्रवाई करने की मांग उठा रहे हैं। वसुंधरा सरकार में खान महाघोटाला, भ्रष्टाचार, 90 बी घोटाला, बजरी, खनन माफिया समेत कई घोटाले को कांग्रेस ने चुनाव में मुद्दा बनाया था। गहलोत ने ही कहा था कि कांग्रेस सरकार आएगी तो जांच करवाएंगे, आरोपी जेल में होंगे, लेकिन जांच नहीं की जा रही। पायलट ने कहा कि राजस्थान में अवैध खनन, बजरी माफिया, शराब माफिया मामले में भी कार्रवाई की बात कही गई थी। लेकिन पायलट की केवल यही मांग नहीं है बल्कि गहलोत और वसुंधरा राजे की मिली भगत को भी उजागर करना चाहते हैं। पायलट सीएम गहलोत और बीजेपी नेता वसुंधरा राजे के बीच की राजनीतिक नजदीकियों से वाकिफ हैं। समझा जाता है कि पिछली बार डिमांड यह भी है कि पैरेलल बैठक करने और स्पीकर को कांग्रेस विधायकों ने सामूहिक इस्तीफे देने के मामले में भी पार्टी कार्रवाई करे। पायलट खेमे की मांग है कि अनुशासहीनता के आरोपी । मंत्री महेश जोशी, शांति धारीवाल और धर्मेंद्र राठौड़ पर एक्शन लिया जाए।
इसके अलावा पायलट की सियासी ख्वाहिश सीएम बनने की है, जिसे लेकर अभी तक कोई फैसला नहीं हो पाया है। चुनाव में चंद महीने ही बाकी है और किसी तरह की कोई तस्वीर साफ नहीं हो पा रही है। ऐसे में पायलट प्रेशर पालिटिक्स बनाने में जुट गए हैं और आरपार के मूड में है।
एक सवाल और की आखिर गहलोत के साथ क्यों खड़ी है कांग्रेस ?
पायलट और गहलोत की लड़ाई में इस बार कांग्रेस गहलोत के साथ खड़ी है। सात महीने में ही बाजी पलट गई है। पायलट को सीएम बनाने की पटकथा लिखी जा रही थी। मल्लिकार्जुन खड़गे और अजय माकन को पर्यवेक्षक बनाकर भी भेजा गया था। उस वक्त जो सियासी ड्रामा हुआ, उसमें गहलोत की इमेज को झटका लगा था। सात महीने के बाद पायलट अब जब अनशन पर बैठे हैं तो मामला बदल गया है। जयराम रमेश से लेकर पवन खेड़ा और सुखजिंदर रंधावा तक पायलट के खिलाफ खड़े नजर आए, क्योंकि पार्टी के विधायक पूरी तरह से अशोक गहलोत के साथ हैं।
सचिन पायलट के दो मित्र जितिन प्रसाद और ज्योतिरादित्य सिंधिया पहले ही कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में चले गए हैं और 2020 में ढेड़ दर्जन विधायकों के साथ गहलोत की इमेज को झटका लगा था। ऐसे यह माना जा रहा है की पायलट भी बीजेपी में जा सकते हैं। इसलिए भी पार्टी हाईकमान पायलट पर ज्यादा भरोसा नहीं कर रही। क्योंकि पायलट को यह भरोसा देकर कांग्रेस पार्टी ने साथ जोड़े रखा कि उनके उठाए मुद्दों पर एक्शन होगा। गहलोत में कांग्रेस अभी राजस्थान में अपना वर्तमान देख रही है और पंजाब की तरह नेतृत्व में किसी तरह का बदलाव कर कोई जोखिम भरा कदम नहीं उठाना चाहती। कांग्रेस पंजाब में कैप्टन अमरिंदर की जगह चरणजीत चन्नी को बनाकर सियासी हश्र देख चुकी है। ऐसे में चुनावी तपिश के बीच राजस्थान में मुख्यमंत्री बदलने का दांव महंगा पड़ सकता है। इसीलिए कांग्रेस फिलहाल गहलोत के साथ खड़ी रहना चाहती है और उनके राजनीतिक अनुभव का फायदा भी उठाना चाहती है। गहलोत ने अपने साढ़े चार साल के शासन में विकास योजनाएं शुरू की हैं, जो चुनाव में ट्रंपकार्ड साबित हो सकती है। ऐसे में गहलोत को हटाने से उसका सियासी फायदा नहीं मिल पाएगा। और यही वो वजह है की कांग्रेस न चाहते हुए भी गहलोत के साथ खड़ी है।