रविवार, दिसम्बर 22, 2024
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1942 की क्रांति में हाथरस के नायक पं. तोताराम शर्मा की 100वीं जयंती विशेष

गुलाम देश में तिरंगा फहराने वाले तोताराम

आज जब हम आजादी के अमृत काल में आ चुके हैं तब हमें उन महान सैनानियों की याद आती है, जिनके कारण घर में आजादी आई है। भले ही आजादी का परचम दिल्ली में फहरा हो, लेकिन उसे फहराने में भारत के हर क्षेत्र का योगदान था। ऐसा ही एक योगदान हाथरस शहर ने भी दिया, जिसकी शुरुआत 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के रूप में हुई और इस क्रांति का अलख जगाने वाले थे

  – पं. तोताराम शर्मा।   

वर्तमान में हाथरस जिले की सिकन्दरा राऊ तहसील के एक गांव सेहोर में रहने वाले पंडित छेदालाल शर्मा जी और गोमती देवी के यहां 14 अप्रैल 1923 को पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई, जिसका नाम तोताराम शर्मा रखा गया। कुछ समय पश्चात ही छेदालाल जी सपरिवार हाथरस आ गए और रुई की मंडी स्थित कन्हैया जी मंदिर की पूजा सेवा करने लगे। बचपन से ही तीव्र बुद्धि, निर्भीक स्वभाव और वाक् कौशल में निपुण पं. तोताराम शर्मा जी शुरू से ही अंग्रेज सरकार के विरोधी थे और उनके मन में भी क्रांतिकारियों के प्रति अपार श्रद्धा थी, इसलिए उन्होंने कॉंग्रेस की सदस्यता ली और बाद में कांग्रेस वर्किंग कमेटी के अध्यक्ष बने। वह भी आजादी की लड़ाई में भाग लेना चाहते थे और उन्हें ये अवसर तब प्राप्त हुआ, जब वह महज उन्नीस वर्ष के थे।

वो समय था 1942 का, जब भारत छोड़ो आंदोलन की यज्ञाग्नि पूरे भारत में फैल रही थी। तब हाथरस का एकमात्र औद्योगिक संस्थान बिजली कॉटन मिल अंग्रेजों के पूर्ण अधिकार में था। आंदोलन की आग की लपटें यहां आने के लिए मचल रही थीं, बस जरूरत थी हवा को रुख दिखाने की। पूरे शहर में कर्फ्यू लगा दिया गया था और सन्नाटे के शहर में सिर्फ अंग्रेजी गोरों और उनके घोड़ों की आवाज सुनाई दे रही थी। सब अपने घरों में बैठे थे: कुछ बेबस थे, कुछ मजबूर थे और कुछ इस हुकूमत को उखाड़ने की योजना बना रहे थे। अचानक सभी ने देखा कि किसी ने बिगुल बजा दिया और मिल के ऊपर यूनियन जैक के झंडे को उतारकर भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का प्रतीक और बापू के चरखे वाला तिरंगा झण्डा फहरा दिया है। वो कोई और नहीं, उसी मिल में काम करने वाला एक लड़का है।

इस ध्वनि ने सभी में जान फूंक दी और फिर वो हुआ जो नयति ने तय कर दिया था। लेकिन कोई भी शुभ कार्य बिना किसी विघ्न के कैसे सम्पन्न हो सकता है? आंदोलन समाप्त हो गया और आजादी के क्रांतिज्वाल थोड़ी धीमी पड़ गई। इस आंदोलन में कई लोगों को कारावास में रहना पड़ा, जिसमें गांधी और अन्य बड़े क्रांतिवीरों के साथ इनका नाम भी था। जिसके लिए करीब 16 माह के लिए इन्हें नजरबंद किया गया और ये जेल में रहे।

भारत स्वतंत्र हो गया और सभी देशवासियों का सपना साकार हो गया और अब उन स्वतन्त्रता सेनानियों को तत्कालीन भारत सरकार को मार्गदर्शित करने का अवसर प्रदान किया गया। हाथरस को अपना सर्वस्व मानने वाले तोताराम जी ने यहीं रहकर इस दायित्व को संभाला और ‘दैनिक नागरिक’ समाचार पत्र का कुशल संपादन किया। नागरिक के प्रधान संपादक के रूप में उन्होंने सदैव नागरिकों की समस्याओं को उठाया और पत्र के नाम को चरितार्थ किया। इनका विवाह सोरों निवासी पं. रामस्वरूप मिश्र की पुत्री श्रीमती अंगूरी देवी से हुआ, जिन्होंने जीवन के हर क्षण पर उनका साथ दिया।

जीवनपर्यंत चामड़ गेट चौराहे पर गणतंत्र और स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर प्रशासन द्वारा उन्हें ध्वजारोहण हेतु आमंत्रित किया जाता और दाऊजी मेले के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्मृति कार्यक्रमों में उन्हें सदैव सम्मानित किया जाता था।

03 जून 2009 को 86 वर्ष की आयु में पं. तोताराम शर्मा जी का निधन हो गया और शासन-प्रशासन द्वारा राजकीय सम्मान के साथ उन्हें अंतिम विदाई दी गई। गुलाम भारत में तिरंगा फहराने वाले सेनानी ने अपनी अंतिम यात्रा स्वतंत्र भारत के तिरंगे में की।

ये दुर्भाग्य की बात है कि आज हम ऐसे महान व्यक्तित्वों को भूलते जा रहे हैं और आज की पीढ़ी उनकी शौर्य गाथाओं से अनभिज्ञ हैं। ऐसे महान क्रांतिकारी के जन्म शताब्दी वर्ष पर साहित्यकार माधव शर्मा उन्हें याद करते हुए लिखते हैं-
“हम अपने घर के आंगन में तम का आतंक न झेलेंगे।
हम जब तक जीवित हे! श्रेष्ठ, हम तुमको न मरने देंगे।।”

यह है तोता’राम’ कहानी

“आजादी की अमर कहानी,
जो हमको है याद जुबानी।
क्रांति कथा है आंदोलन की,
‘भारत छोड़ो’ सन बयालीस की।।
कोई दीखता नहीं यहाँ पर,
बिजली कॉटन मिल खाली है।
ऊपर एक यूनियन जैक है,
ढलते सूरज की लाली है।।
राहें सब सुनसान पड़ी हैं,
चौराहों पर पुलिस खड़ी है।
जहाँ भी देखो वहाँ दिखेगी,
गोरी पलटन बहुत बड़ी है।।
हाथों में हथियार पकड़कर,
जनता को हैं डर दिखलाते।
बिना वजह ही जो दिख जाए,
उस पर मारें हंटर लातें।।
इतने निर्मम और क्रूर हैं,
भला रहम करना न जानें।
लाल बंदरों की टोली को,
दूर देखकर सब घबरावें।।
मगर देखो ये कौन जा रहा?
धीरे-धीरे कदम बढ़ाकर।
छिपते-छुपाते मुँह को ढक के,
नजरबंद या नजर बचाकर।।
उसने व्यूह को भेद दिया है,
मिल के ऊपर पहुँच गया है।
उसने बिगुल बजाकर मानों,
शंखनाद का काम किया है।।
सबकी नजरें दौड़ रहीं है,
कहाँ से सन्नाटा टूटा है?
देखा तो मिल के खम्बे पर,
एक नया झण्डा फहरा है।।
तीन रंग में रंगा है झंडा,
इसमें बापू का चरखा है।
एक हाथ में लाठी पकड़ी,
तो दूजे में बिगुल रखा है।।
लहर क्रांति की फैल चुकी है,
निकल पड़े हैं घर से अब सब।
“एक तिरंगे की खातिर हम,
अपना खून बहा देंगे सब”।।
ये बातें होठों पर उनके,
इनसे छुटकारा पाना है।
आज हाथरस में गोरों ने,
हाथ-हाथ का बल जाना है।।
हुआ वही परिणाम अंत में,
उसी वीर को मिली यातना।
काल कोठरी मिली सजा में,
करी नहीं कोई भी याचना।।
आजादी मिल गई हमें फिर,
इतनी ही है याद जुबानी।
भूल न जाना इसको कोई,
कही जो तोता ‘राम’ कहानी।।
आजादी की अमर कहानी।।”

 

    रिपोर्ट/स्टोरी/कविता : माधव शर्मा

 

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