विधानसभा चुनाव में अभी कुछ समय बांकी है। जहां प्रदेश की सभी राजनीतिक पार्टीयों को एक-दूसरे के खिलाफ कमर कसने की जरूरत है। तो वहीं बीजेपी और कांग्रेस आपस में लड़ रहे हैं। दोनो पार्टीयों में फर्क बस इतना है कि कांग्रेस की अंदरूनी कलह जगजाहिर है तो दूसरी ओर बीजेपी में भीतरघात जारी है। फेस वॅार की आग दोनो ही तरफ जारी है।
आपको बता दें कि पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया के जाने के बाद बीजेपी की लड़ाई और बढ़ चुकी है। लेकिन बीजेपी की खास बात यह है कि बीजेपी की पार्टी से चाहे जो भी बाहर होता है पता नहीं चलता। और एक कांग्रेस की पार्टी है जो दफ्तर से लेकर सड़क तक गदर मचा रखी है। हाल ही में पूनिया की बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष पद से विदाई होने के बाद पूनिया और वंसुधरा के समर्थकों के बीच मानो दो फाड़ हो गई हो। पूर्व मुख्यमंत्री के कार्यक्रम में न पूनिया जाते हैं। और न ही पूनिया के साथ राजे दिखती है।
वहीं इधर जोशी की ताजपोशी से तो मुकाबला मानो त्रिकोणीय हो गया है। जोशी सेघ से आते हैं। और मोदी शाह के नजदीक हैं। बीजेपी हाईकमान ने पूनिया को हटाकर जोशी को पार्टी का कमान सौंपा तो यही लग रहा था कि इससे पार्टी का अंदरूनी झगड़ा शांत होगा। लेकिन असल में उल्टा हो रहा है। पार्टी की गुटबाजी अंदर ही अंदर बढ़ती जा रही है। ये वसुंधरा के समर्थकों की ताकत थी। जिन्होंने पूनिया को पार्टी से हटाने पर मजबूर कर दिया। कालीचरण शर्राफ और प्रहलाद गुंजल जैसे नेता राजे को फिर से गद्दी पर काबिज करने के जुगाड़ में है। और इधर उनके धुर विरोधी नेता गजेंद्र सिंह शेखावत लगातार पीएम मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ने की वकालत कर रहे हैं। लेकिन बीजेपी में अब भी कई नेता चाहते हैं कि सीएम का चेहरा चुनाव के बाद तय हो।