बुधवार, दिसम्बर 4, 2024
होमब्रजदेवेश लॉक डाउन का पूरा लाभ उठाते हुए सजल विधा में लिख...

देवेश लॉक डाउन का पूरा लाभ उठाते हुए सजल विधा में लिख रहे हैं काव्य की पुस्तक

हाथरस (पवन पंडित/ब्रजांचल ब्यूरो) –

स्थानीय नगर निवासी कवि एवं साहित्यकार देवेश सिसोदिया लॉक डाउन का पूरा लाभ उठाते हुए काव्य की एक पुस्तक लिख रहे हैं, जो सजल विधा में लिखी जा रही है। जिसमें कोरोना संक्रमित कार्यकाल को संदर्भित करते हुए अधिकतर रचनाएं लिखी गई हंै इस पुस्तक में अधिकतर रचनाएं कोरोना वायरस की समस्या और समाधान पर आधारित हैं श्री सिसोदिया ने बताया कि वे इस समय अपनी अप्रकाशित तीसरी पुस्तक कोरोना टाइम सजल सृजन लिख रहे हैं। जो 3 मई तक पूरी होने वाली है। श्री सिसोदिया सेकड़ों मंचों पर काव्य पाठ करने के साथ-साथ साहित्य सृजन में पूरा योगदान देते हैं उनके द्वारा लिखे कई लेख व कविताएं तमाम पत्र-पत्रिकाओं में छपते रहते हैं उनका एक साझा सजल संग्रह, सजल सप्तक -6 ,डॉ अनिल गहलोत के संपादन में छप चुका है तथा देश के प्रतिनिधि गीतकार के रूप में गीत संग्रह में भी उनका योगदान रहा है श्री सिसोदिया ने बताया कि सजल सर्जना समिति द्वारा छत्तीसगढ़ के जांजगीर जनपद में एक कार्यक्रम के दौरान उन्हें सजल गौरव की उपाधि से भी अलंकृत किया गया है। तथा विभिन्न संस्थाओं द्वारा उन्हें विभिन्न प्रकार के सम्मान प्राप्त हो चुके है। श्री सिसोदिया कोरोना वायरस से बचने के लिए अपनी कविताओं के माध्यम से भी लोगों को सोशल मीडिया पर जागरूक करते रहते हैं।
जैसे यह रचना देखंे

सजल
लगा लो चटकनी घर की कि बचने में भलाई है,
किसी पागल ने देखो आग धरती पर लगाई है।
न पानी है न रोटी है मुसीबत कैसी’ आई है
घरों में कैद बैठे हैं दुहाई है दुहाई है।।
पसारे हाथ वह कैसे नहीं जिसने पसारे हों,
कमाकर ही सदा जिसने अभी तक रोटी’ खाई है।
रहो घर में अभी तुम सब न निकलो कोई’ बाहर अब,
सभी ने एकजुट होकर अलख अब ये जगाई है।
हमारे देश का शासन बनेगा बानगी जग में,
बढ़ा है देश का गौरव सभी ने सीख पाई है।

यह मुक्तक भी हमको हौसला देता है

कोरोना से न कोई अब किसी की आह निकलेगी,
बढ़ा लो दूरियां तन की यहीं से राह निकलेगी।
समय नाजुक बड़ा है मानव जाति पर खतरा
रखो तुम हौसला थोड़ा कोई तो थाह निकलेगी।।

इस सजल के माध्यम से कवि ने धैर्य तोड़ती जनता को समझाने का कुछ इस प्रकार प्रयास किया है।

सजल
कुछ दिन घर में रहले साथी,
बीमारी से बचले साथी।
बुरा समय है टल जाएगा
सबर और कुछ करले साथी।।
दुख के बादल छट जाएंगे,
धीरज थोड़ा रखले साथी।
ललित उषा आने वाली है,
नभचर घर से निकले साथी।
देवनदी की निर्मल धारा,
मस्तक अपने रख ले साथी।
झेल रही संताप मही अब,
मन को पावन करले साथी।
मानव रूपी कुछ रजनीचर,
अंदर दानव निकले साथी।
श्रुत पट हर्षित करे कोकिला,
रोष दंभ से बचले साथी

RELATED ARTICLES

2 टिप्पणी

- Advertisment -

Most Popular

Recent Comments