गुरूवार, नवम्बर 21, 2024
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अखिल भारतीय कवि सम्मेलन एवं मुशायरा” स्मृतिशेष कवि एवं शायर श्री बलवीर सिंह पौरुष की पुण्य स्मृति में

बलवीर सिंह पौरुष हिंदी और उर्दू दोनों भाषाओं पर पकड़ रखते थे  – पुष्पा चौहान

सिकन्दराराऊ (ब्रजांचल ब्यूरो)।

एकता साहित्य संस्था के तत्वावधान में मुरली कृष्णा मंगल धाम में “अखिल भारतीय कवि सम्मेलन एवं मुशायरा” स्मृतिशेष कवि एवं शायर श्री बलवीर सिंह पौरुष की पुण्य स्मृति में आयोजित किया गया। कवि सम्मलेन एवं मुशायरे की गरिमामयी अध्यक्षता फ़िल्म निर्माता व निर्देशक परिवार से जुड़ी, पूर्व विधायक एवं समाजसेवी श्रीमती पुष्पा चौहान ने की और संयोजन व संचालन कवि अवशेष विमल ने किया। मंच पर सह अध्यक्ष के रूप में संतोष पौरुष विराजमान रही। कार्यक्रम में अतिथि के रूप में माननीय विधायक वीरेंद्र सिंह राणा, ब्लॉक प्रमुख सुमंत किशोर सिंह और पूर्व नगर पालिका अध्यक्ष विपिन वार्ष्णेय उपस्थित रहे।

मंचासीन अध्यक्ष एवं अतिथियों के कर कमलों द्वारा माँ शारदे व स्व. बलवीर सिंह पौरुष की छविचित्र के समक्ष दीप प्रज्वलन एवं शमा रोशन के बाद कार्यक्रम की विधिवत शुरुआत हुई। इस अवसर पर अध्यक्षता कर रही श्रीमती पुष्पा सिंह चौहान ने सम्बोधित करते हुए कहा कि बलवीर सिंह पौरुष हिंदी और उर्दू दोनों भाषाओं पर पकड़ रखते थे, इस कारण वे कवि और शायर दोनों के ही चहेते रहे। त्रिशूल सिंह पौरुष, ज्ञानेंद्र पौरुष व रंजीत पौरुष द्वारा आयोजित यह कार्यक्रम उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि है। इसके लिए पूरा पौरुष परिवार धन्यवाद और बधाई का पात्र है।

सरस्वती वंदना दिल्ली से पधारी चर्चित कवयित्री रजनी सिंह अवनि ने की। उसके बाद प्रथम कवि के रूप में आगरा से पधारे कवि सचिन दीक्षित ने ओज स्वर में काव्यपाठ करते हुए पढ़ा-
मैंने बहुत सम्मान किया है बापू वाली सीखों का।
लेकिन फिर भी कर्जदार हूं भगत सिंह की चीखों का।।

बलवीर सिंह पौरुष के शिष्य अंतर्राष्ट्रीय ओजकवि मनवीर मधुर की ओज की दहाड़ से सारा सदन तालियों से गूँज उठा। उन्होंने पढा-

भले बिखरे स्वयं का घर, ये क़ीमत कौन देता है ।
अगर बेख़ौफ़ जीते हो, तो हिम्मत कौन देता है ।।
सिपाही और सैनिक ही, रहे बाँधे क़फ़न सर पर,
बताओ छोड़कर इनको, शहादत कौन देता है ।।
जोश अधिक होगाउतना ही, जितनी विषमघड़ी होगी ।
आज़ादी की चाहत वाली, हिम्मत बहुत बड़ी होगी ।।
जाति, धर्म कोई हो लेकिन, अपने-अपने स्तर पर,
आज़ादी की निश्चित सबने, मिलकर जंग लड़ी होगी ।

अंतर्राष्ट्रीय शायर कुँवर जावेद की शायरी ने जादू की तरह श्रोताओं पर असर किया। उन्होंने पढ़ा-
नदी तो क्या है समन्दर भी तैरने लगता ।
तुम्हारा डूबा मुकद्दर भी तैरने लगता ।।
जो तुम जरा सी भी मन्दोदरी की सुन लेते ।
तुम्हारे नाम का पत्थर भी तैरने लगता ।।

कोई हिन्दुत्व कि इस्लाम न पूछा जाये ।
मरने के बाद का अंजाम न पूछा जाये ।।
मेरी आंखों में पढ़ी जाये वतन की खुशबू ।
कौन हूँ मुझसे मेरा नाम न पूछा जाये ।।

रीवा से पधारे ओजकवि राधाकान्त पाण्डेय ने पढ़ा-    वीर वही जो सबके मन में शौर्य, शक्ति भरते हैं।
कायर तो किञ्चित निर्णय लेने से भी डरते हैं।
राष्ट्र समूचा उन बेटों की यशगाथा गाये जो,
मातृभूमि के हेतु मृत्यु का आलिंगन करते हैं।

झांसी के शायर अर्जुन सिंह चाँद ने उम्दा शेर पढ़कर खूब वाहवाही लूटी। उनका शेर था –
चलो हम गाँव में कुछ दिन गुजारें,
शहर में हर तरफ काला धुंआ है।

नागपुर से पधारे हास्यकवि हेमंत मोहरे और धौलपुर से पधारे हास्यकवि रामबाबू सिकरवार ने श्रोताओं को हंसा हंसा कर लोट पोट किया। दिल्ली के युवा गीतकार सर्जन शीतल और अंतर्राष्ट्रीय गीतकार डॉ. विष्णु सक्सेना ने गीतों की वर्षा की।

कार्यक्रम में विजय भारत कुलश्रेष्ठ, बबलू सिसोदिया, कृष्ण कुमार राघव, संजीव भटनागर, शरीफ अली, राजुल चौहान, पंकज गुप्ता, नीरज वैश्य, कमलनयन, स्नेहलता सिंह, रामजीलाल, जसावत, प्रबल प्रताप सिंह, सूरज बजाज, प्रदीप गर्ग, मुकेश चौहान, तरुण सिंह राणा, मीरा महेश्वरी, कमला जादौन, कमलेश शर्मा, साधना चौहान, मुकुल गुप्ता, भद्र पाल सिंह चौहान , प्रमोद विषधर, शुभम आजाद, रजाक नाचीज, आतिश सोलंकी, शमशुल अहद शम्स, बारिश उझियांवी, साबिर अली साबिर, डॉक्टर दानिश कैफ़ी, शमीम खान, समीम, शशि बाला वार्ष्णेय, राज कुमारी गुप्ता आदि सैकड़ों लोग उपस्थित थे।
अंत में आयोजक त्रिशूल सिंह पौरुष, ज्ञानेंद्र पौरुष व रंजीत पौरुष ने सबका आभार व्यक्त किया।

 

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